
Gulzar Shayari In Hindi: गुलज़ार साहब हिंदी साहित्य के महान शायर और लेखक हैं। उनकी शायरियाँ और ग़ज़लें दिल की गहराइयों को छू लेती हैं। यहाँ पढ़िए उनकी कुछ यादगार और लोकप्रिय रचनाएँ।
Gulzar Shayari In Hindi

शिकायत और दुआ में जब एक ही
शख्श हो,
समझ लो इश्क़ करने की अदा आ
गई तुम्हे ।

कुछ लोगो को लगता है,
उनकी चालाकियाँ मुझे समझ नहीं आती
लेकिन मैं ख़ामोशी से देखता हूँ,
उन्हें अपनी नजरों से गिरते हुए।

इश्क़ की तलाश में
क्यों निकलते हो तुम,
इश्क़ खुद तलाश लेता है
जिसे बर्बाद करना होता है।

बहुत लम्बी खामोशी से गुजरा हूं मैं,
किसी से कुछ कहने की कोशिश में..!

यूँ तो ऐ ज़िन्दगी तेरे सफ़र से शिकायतें
बहुत थी,
मगर दर्द जब दर्ज करने पहुंचे तो
कतारें बहुत थी !

याद हैं हमको अपने सारे गुनाह
एक तो मोहब्बत कर ली,
दुसरा तुम से कर ली और तीसरा
बेपनाह कर ली..!

खुली किताब के सफ़हे उलटते रहते हैं,
हवा चले न चले दिन पलटते रहते है।

यकीन मानो कि वो इंसान तुम्हें
सच में चाहता है,
जो अक्सर फ़ोन काटते वक़्त
तुमसे ये कहता है।

जब भी आंखों में अश्क भर आए
लोग कुछ डूबते नजर आए
चांद जितने भी गुम हुए शब
के सब के इल्ज़ाम मेरे सर आए।

भूलने की कोशिश करते हो,
आखिर इतना क्यों सहते हो,
डूब रहे हो और बहते हो,
दरिया किनारे क्यों रहते हो।
गुलज़ार शायरी हिंदी में

ना मैं गिरा ना मेरे हौसले गिरे..
लेकिन मुझे गिराने मे लोग कई बार गिरे।

हमने देखी है उन आँखों की खुशबू
हाथ से छूके इसे रिश्तों का इल्ज़ाम न दो..
सिर्फ़ एहसास है ये रूह से महसूस करो
प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो…

छत नहीं रहती दीवारो दर नहीं रहता..
घर में बुजुर्ग ना हो तो घर घर नहीं रहता…

मैं किस्सा हूँ अनसुलझा सा,
अनसुलझी मेरी कहानी है,
कुछ मेरे टूटे सपने हैं,
और कुछ उनकी मेहरबानी है।

ख़ुदा तूने तो लाखो की तकदीर संवारी है,
मुझे दिलासा तो दे की अब तेरी बारी हैं..!!

तुझसे नाराज नहीं जिन्दगी हैरान हूँ मैं,
तेरे मासूम सवालों से परेशान हूँ मैं..!

वजह पूछने का मौका ही नहीं
मिला,
वो लहज़ा बदलते गए,
और हम अजनबी होते गए..

इश्क अधूरा रहा तो कोई तो
मुकम्मल वजह रही होगी।
कोई तो बात तुमने भी, यारा दिल
तोड़ने वाली कही होगी।।

इतना मत तरसा की मुझे अपने
फ़ैसले पर अफ़सोस हो..
कल तु बात करना चाहें और हम
ख़ामोश हो…!

रिश्ते वही लाजवाब होते हैं,
जो अहसानो से नहीं बनते
बल्कि एहसासों से बनते हैं..!
New Gulzar Shayari
सब को मालूम है बाहर की हवा है,
कातिल यूँ क़ातिल से उलझने
की ज़रूरत क्या है।
टप टप गिरती है
बरसातें
वो पत्ते रोते हैं
देख बहार में
जीने वालों के भी
गम होते हैं
ख़ुशबू जैसे लोग मिले अफ़साने में
एक पुराना ख़त खोला अनजाने में
शाम के साए बालिश्तों से नापे हैं
चाँद ने कितनी देर लगा दी आने में
रात गुज़रते शायद थोड़ा वक़्त लगे
धूप उन्डेलो थोड़ी सी पैमाने में
जाने किस का ज़िक्र है इस अफ़साने में
दर्द मज़े लेता है जो दोहराने में
दिल पर दस्तक देने कौन आ निकला है
किस की आहट सुनता हूँ वीराने में
हम इस मोड़ से उठ कर अगले मोड़
चले उन को शायद उम्र लगेगी आने में
आदतन तुमने कर दिए वादे
आदतन हमने ऐतबार किया
तेरी राहों में बारहा रुक कर
हमने अपना ही इंतज़ार किया
अब न मांगेंगे ज़िन्दगी या रब
ये गुनाह हमने इक बार किया
न तुझ से है न गिला आसमान से होगा
तिरी जुदाई का झगड़ा जहान से होगा
तुम्हारे मेरे तअ’ल्लुक़ का लोग पूछते हैं
कि जैसे फ़ैसला मेरे बयान से होगा
अगर यूँही मुझे रक्खा गया अकेले में
बरामद और कोई उस मकान से होगा
जुदाई तय थी मगर ये कभी न सोचा था
कि तू जुदा भी जुदागाना शान से होगा
गुज़र रहे हैं मिरे दिन इसी तफ़ाख़ुर में
कि अगला कैस मिरे ख़ानदान से होगा