
Allama Iqbal Shayari: अल्लामा इक़बाल की शायरी ज्ञान, प्रेरणा और गहराई से भरी हुई है। उनके शब्द हमें बड़े सपने देखने और मेहनत करने की प्रेरणा देते हैं। उनकी शायरी दिल को छूती है, आत्मा को जगाती है और आज भी करोड़ों लोगों को प्रेरित करती है।
Allama Iqbal Shayari

माना कि तेरी दीद के काबिल नहीं हूं
मैं, तू मेरा शौक देख मेरा इंतजार देख

अमल से जिंदगी बनती है
जन्नत भी जहन्नम भी, ये खाकी
अपनी फितरत में न नूरी है न नारी है.!

सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं
तही ज़िंदगी से नहीं ये फ़ज़ाएँ यहाँ
सैकड़ों कारवाँ और भी हैं

अस्थिर है ये जिंदगी के लम्हे
खो दे गया हूँ मैं अपनी ज़मीं पर
उठ जाती हैं हर इक धड़कन के साथ
मेरे अंदर बसा इश्क़ की रौशनी पर।

तिरे सीने में दम है दिल नहीं है
तिरा दिल गर्मी-ए-महफ़िल नहीं है
गुज़र जा अक्ल से आगे कि ये नूर
चराग़-ए-राह है मंज़िल नहीं है

तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ
ये जन्नत मुबारक रहे जाहिदों को कि
मैं आप का सामना चाहता हूँ

तेरी दुआ से कज़ा तो बदल नहीं सकती
मगर है इस से यह मुमकिन की तू बदल जाये
तेरी दुआ है की हो तेरी आरज़ू पूरी
मेरी दुआ है तेरी आरज़ू बदल जाये

ज़लाम-ए-बहर में खो कर सँभल जा
तड़प जा पेच खा-खा कर बदल जा
नहीं साहिल तिरी किस्मत में ऐ मौज
उभर कर जिस तरफ चाहे निकल जा
अल्लामा शायर की शायरी हिंदी में
दीप ऐसे बुझे फिर जले ही
नहीं जख्म इतने मिले फिर
सिले भी नहीं व्यर्थ किस्मत पे
रोने से क्या फायदा सोच लेना
कि हम तुम मिले भी नहीं।
अपने मन में डूब कर पा जा
सूरत-ए-जिंदगी तू अगर मेरा
नहीं बनता ना बन, अपना तो बन
कोई इबादत की चाह में रोया,
कोई इबादत की राह में रोया,
अजीब है ये नमाज-ए-मोहब्बत के
सिलसिले इकबाल, कोई कजा कर के
रोया, कोई अदा कर के रोया
ख़िरद-मंदों से क्या पूछें कि मेरी इब्तिदा क्या है।
कि मैं इस फ़िक्र में रहता हूँ मेरी इंतिहा क्या है
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से
पहले ख़ुदा बढ़े से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है।
अभी शीसा हूँ तो
सबकी आँखों में चुभता हूँ
जब आईना बनूँगा तो
सारा जहाँ देखेगा
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है,
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा…।
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